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भक्ति या भाव: धार्मिकता और भावनाओं की गहराई पर विचार- २

हम अपनी धुन में चले जा रहे हैं अचानक से सामने आ रही तेज रफ्तार गाड़ी आप के बगल से निकल जाती हैं आप संभल पाएं उससे पहले ही आपके मुंह से निकलता है, हे भगवान बच गए।
भगवान, ईश्वर हमेशा हमारे अंदर रचा बसा एक ऐसा भाव है जो वातावरण में हवा की तरह हमारे अंदर घुला हुआ है।

हमारे अंदर कहीं ना कहीं ऐसा विश्वास है कि कोई दिव्य शक्ति अवश्य हर समय हमारे आस पास रहती है । कुछ अच्छा हो तो अनायास ही हमारी आंखें बंद हो जाती हैं और हम उस शक्ति को धन्यवाद देते हैं।
यह भाव ही तो है जो हमें जोड़ता है उस दिव्य शक्ति से जो हमारे अंदर हर वक्त स्पंदित रहती हैं ।

हमारे अवतार चाहे वह राम हो या कृष्ण ,ह हमें हमेशा यही शिक्षा देते हैं कि अगर आप का भाव सच्चा है तो ईश्वर हर वक्त आपके साथ ,आपके सामने ही हैं ।

गीता में कर्मयोग की शिक्षा देने वाला कृष्ण यही कहता है कि जो भक्त सहज भाव से मुझे भजता है उसका योगक्षेम मैं स्वयं वहन करता हूं ।

श्री राम शबरी के सहज भाव से प्रेरित होकर उसके झूठे बेर खाते हैं और उसे नवधा भक्ति का आशीर्वाद देते हैं।

भाव ही सर्वप्रथम है। आज मेरे पास एक और कहानी है जो इस बात का प्रतीक है कि भाव ही प्रधान है ।

एक महिला जिनके बच्चे नहीं हैं वर्षों से कृष्ण को पुत्र स्वरूप में अपने साथ ही रखती हैं।
सुबह उठाना ,उनकी मालिश करना, नहलाना, सुंदर कपड़े पहनाना ,उसकी पसंद के पकवान बनाना, सब कुछ ।
एक बच्चे की तरह उसकी देखभाल करना । कान्हा भी उनसे रूठते हैं, उन्हें मनाते हैं और अपनी बात मनवाने हो तो शैतानियां भी करते हैं । यह सब बातें बिल्कुल सहज और सत्य हैं और व्यक्तिगत भी हैं यहां बताने का मतलब सिर्फ इतना है कि अगर उस महिला का भाव आपके अंदर के भाव को छू भर जाए तो हम सफल हो जाए। उस महिला को एक दिन पता चला कि उन्हें कैंसर है उन्हें कीमोथेरेपी के लिए मुंबई जाना होगा। सारी तैयारियां हो गई थी निकलने से पहले अपने पुत्र “कृष्ण” से मिलने गई ,देखा तो बहुत उदास है मंदिर से उठाकर गोद में बिठाया मुकुट उतारा और सीने से लगा कर बोली “कन्नू” चिंता ना करो मैं जल्दी ठीक हो कर आती हूं, तुम्हारे पास ,कुछ दिन की ही तो बात है। मैं विस्मय से उस महिला को देख रही थी। मैं रोमांचित भी थी। कैसा सहज भाव है यह । वर्षों वर्षों परब्रह्म को अपना पुत्र मानते हुए भी जब उन्हें कृपा में ऐसा रोग मिल गया तो उन्होंने उसके लिए कृष्ण को यह नहीं कहा कि तुम्हारी पूजा का ऐसा सिला मिला मुझे । बल्कि वह जगत के चिंता हरण को समझा रहे हैं मैं जल्दी ठीक होकर आऊंगी चिंता ना करो।

ऐसा मातृत्व भाव प्रभु के प्रति यदि है तो वे जरूर स्वयं उस मां की गोद से प्रकट होंगे। विश्वास है मुझे ।
जय श्री कृष्ण

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