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भक्ति या भाव: एक गहरी आत्मिक यात्रा और इसका महत्व

अक्सर ऐसे लोगों से मिलते हैं जो सिर्फ इसलिए घर में भगवान की मूर्ति या फोटो नहीं रखना चाहते क्योंकि उन्हें लगता है कि वे प्रतिदिन उसकी पूजा पाठ नहीं कर पाएंगे।

इस विषय पर सोचने से पहले मैं आपको एक कहानी (जो सच्ची है) सुनाना चाहती हूं।

उनके घर में 12-13 वर्षों से लड्डू गोपाल की मूरत थी जिसे वह शायद दीपावली या होली पर ही साफ करते या स्नान कराते उनके कपड़े बदलते और बस फिर पूरे साल में मंदिर में उन्हीं कपड़ों में सजे रहते। उनके पास समय का अभाव था। दोनों अच्छे कंपनी में जॉब पर है।

1 दिन घर की महिला सदस्य की मां उनके साथ रहने आई थी साथ में अपने लड्डू गोपाल की मूरत लाई थी। जब सुबह उन्होंने अपने लड्डू गोपाल को नहलाया सुंदर वस्त्र पहनाए तो उन्होंने उस घर में विराजे गोपाल को भी वह लाकर सुंदर वस्त्र पहनाए और जाकर अपनी बेटी के हाथों में दे दिया उस समय ऑफिस के लिए रेडी हो रही थी । पता नहीं 12-13 वर्षों में शायद उन्होंने उस लड्डू गोपाल की प्रतिमा को इतने करीब से देखा भी था या नहीं। अपने आप ही उनकी आंखों से आंसुओं की धार बहने लगी। ऐसा लगा मानो आज ही उनके दिल ने धड़कना शुरू किया हो करीब एक डेढ़ घंटे तक वे इस मुहूर्त को अपनी हथेलियों में था में बैठी रही और अनवरत आंसू बहते रहे।

बस अगले दिन से ही ऐसा भाव प्रबल हुआ कि ऑफिस जाने से पहले उन्हें लहराना कपड़े पहनाना यहां तक कि प्रशांत बनाना भी शुरू कर दिया पहले जो काम समय की बर्बादी लगता था। अब उसे किए बिना लगता कि दिन ही पूरा नहीं हुआ। यह कहानी लगभग सभी की है। हम सब जब समय के अभाव की बात करते हैं तो कटौती पूजा पाठ के समय में ही करते हैं।

जरा अपने प्रभु को समय दे कर तो देखिए आप में इतनी असीम ऊर्जा भर देंगे कि आप जीवन के हर क्षेत्र में आगे ही आगे बने रहेंगे।

वे केवल भाव के भूखे हैं। प्रभु तो आपके ही हैं। बस आपको उनका होना बाकी है। समर्पण बाकी है। भाव बाकी है।

शेष गणेश महेश दिनेश सुरेश अहूजा निरंतर ध्यावे चाहे।

अनंत अनंत अखंड छेद अवैध सुबोध बतावे।।

नारद से सुख व्यास जी हारे तो पुणे पार न पावे।

ताहि अहीर की छोकरिया छछिया भर छाछ पे नाच नचावे।। (रसखान)

जिसका जैसा भाव है कान्हा उसको उसी भाव में मिल जाते हैं बस आप अपना आधार मजबूत रखें बाकी सब कान्हा पर छोड़ दीजिए जय श्री कृष्णा।

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